Sunday, November 3, 2019

Purane Shehar

तुम क्यों नये शहर मैं पुराने शहर को ढूंढते हो
वह शहर अब यहाँ नहीं बास्ते

न बची है वो गलियां जहाँ बेबाक निकल जाते तुम
और आवारागर्दी कर रोज़ नए रस्ते निकाल घर पहुँच ही जाते थे


हसते थे तो बेबाक हसते थे , रोते थे तो बिलख बिलख रोते थे
मुखोटों से परे ज़िन्दगी बुरी तो न थी

वह शहर अब शायद बस हमारी यादों मैं बसते है
और फिर किसी कोने से झांककर हमारी हालत पे हसते है

-- shally --


कभी पैसे दिए और कभी फ्री मैं खाई वह टॉफियां
कभी दोस्तों ने दिलदारी की और कभी तुमने खिला दी उनको कुल्फियां

कट्टी पक्की मैं ज़िन्दगी बुरी तो न थी
लड़ते थे , मानते भी थे , कोल्ड वॉर से परे थी ज़िन्दगी








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Purane Shehar

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